Tuesday, April 12, 2011

खोदा पहाड़, निकली चुहिया

कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह, कांग्रेस के ये दो नेता अनर्गल प्रलाप के लिए ही ज्यादा जाने जाते हैं. आम जनता इनकी बातों को गंभीरता से कम ही ग्रहण करती है. लेकिन लोकपाल बिल के संबंध में कपिल सिब्बल का यह कथन कि अगर कोई गरीब बच्चा साधन के अभाव में स्कूल जाने से वंचित रह जाता है, एक गरीब आदमी धन के अभाव में उचित चिकित्सा न मिलने के कारण दम तोड़ देता है, तो ऐसे में लोकपाल बिल क्या उसके किसी काम आ सकता है, अत्यन्त विचारणीय है. अन्ना हज़ारे की इच्छाओं के अनुरूप यदि लोकपाल बिल पास हो जाता है, लागू भी हो जाता है, तो क्या भ्रष्टाचार रुक जाएगा? इस देश में दहेज विरोधी कानून, बलात्कार विरोधी कानून, हत्या विरोधी कानून वर्षों से अस्तित्व में हैं. क्या किसी भी घटना में कोई कमी आई है? अन्ना हजारे को मालूम हो या न हो, लेकिन सभी सरकारी कर्मचारियों को यह मालूम होगा कि भ्रष्टाचार, कदाचार और वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए प्रत्येक प्रान्त में महालेखाकार (एकाउन्टेन्ट जेनेरल) की अधिकार प्राप्त आडिट टीमें प्रत्येक विभाग की सभी इकाइयों में हर साल आडिट करती हैं. इन अधिकार प्राप्त टीमों की रिपोर्ट पर सीधी कर्यवाही करना अनिवार्य होता है. लेकिन ये टीमें किस तरह आडिट करती हैं, सबको ज्ञात है. आने के पूर्व ही उनकी आवभगत शुरु हो जाती है. उन्हें स्टेशन से लेना, अच्छे होटल में ठहराना, उनके नाश्ते-खाने-पीने की सर्वोत्तम व्यवस्था करना और आडिट के समय कार्यालय में ड्राई फ्रुट्स, वेट फ्रुट्स, मिठाई, नमकीन और शीतल-उष्ण पेयों की हर पंद्रह मिनट के बाद व्यवस्था करना आडिट कराने वाली इकाई की जिम्मेदारी होती है. आडिट पार्टी रस्मादायगी के लिए कुछ रफ़ नोट्स भी बनाती हैं जिसे डिसकशन के बाद ड्राप भी कर दिया जाता है. चलते चलाते आडिट पार्टी को दक्षिणा के रूप में वापसी के वातानुकूलित क्लास के टिकट के साथ इच्छित धनराशि भेंट में दी जाती है. ये सारे खर्चे किसी अधिकारी या कर्मचारी की ज़ेब से नहीं होते. ये सभी खर्च उस इकाई को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवंटित मद के ओ ऐंड एम (आपरेशन ऐंड मेन्टेनैन्स) के सरकारी पैसे से ही किए जाते हैं. इस तरह हर वर्ष एकाउंटेन्ट जनरल द्वारा आडिट किए जाने की रस्म अदायगी भ्रष्टाचार में एक और नगीना जोड़कर पूरी की जाती है.
जब लेनेवाले और देनेवाले में सहर्ष आपसी सहमति बन जाती है, तो भ्रष्टाचार, सदाचार बन जाता है, परंपरा बन जाती है. कोर्ट-कचहरी, नगरपालिका, अस्पताल, स्कूल, बिजली, जलकल, पुलिस, ब्लाक, जिला मुख्यालय, सचिवालय.............ऐसी कौन सी जगह है जहां अवैध लेन-देन ने दस्तूर का रूप नहीं ले लिया है. टेंडर, ठेकेदारी और सुविधा शुल्क ने कहां पैर नहीं फैलाया है? रेल, खेल, सेल, भेल.................कितने विभागों का नाम गिनाया जाय. किस परीक्षा का प्रश्न-पत्र गोपनीय रह गया है? फ़र्जी पायलट हवाई जहाज उड़ा रहे हैं. मनरेगा ने ग्राम प्रधानों को राजा बना दिया और और सांसद-विधायक निधियों ने जन प्रतिनिधियों को महाराजा. अन्ना हजारे सहब! लोकपाल बिल की ड्राफ़्ट कमिटी में अपने चमचे शान्ति भूषण और उनके बेटे प्रशान्त भूषण को नामित करा देने भर से नेताओं और नौकरशाहों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश लग पाएगा, इसमें संदेह ही संदेह है. देश में दावानल की तरह फैल रही गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, शोषण, जनसंख्या विस्फोट और कदाचार को दूर करने में यह बिल कितना सार्थक हो पाएगा, क्या इसका उत्तर किसी के पास है?
अन्ना साहब को न भारत की जानकारी है, न भारत की मूल समस्याओं की. इंडिया शाइनिंग के कुछ ग्लैमर पसंद कार्यकर्त्ता, कारपोरेट घरानों से नियंत्रित मीडिया और सरकार की सहयता से चलाया गया आन्दोलन कभी प्रभावकारी नहीं हो सकता. हिन्दुस्तान की असली समस्या यहां पर लागू आयातित संविधान है. हमारी न्याय प्रणाली और इंडियन पेनल कोड आज भी वही है जो अंग्रेजों ने बनाया था. ब्यूरोक्रेसी में आई.सी.एस का नाम बदलकर आई.ए,एस. कर दिया गया, लेकिन मानसिकता और कार्यप्रणाली में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया. शिक्षा के क्षेत्र में हम पहले से ज्यादा गुलाम नज़र आते हैं. अंग्रेजी ने हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं को लील लिया है. अपने देश की संसद की कर्यवाही देखकर ऐसा लगता है जैसे हम इंगलैंड के हाउस आफ़ कामन्स में बैठे हों. जिनको अंग्रेजी नहीं आती है, वे सांसद हाथ उठाने के अलावा पूरे पांच साल तक सदन में एक शब्द भी नहीं बोलते.यह वही संसद है जहां लालू और मुलायम की हिन्दी का अक्सर मज़ाक उड़ाया जाता है. जबतक भारत की बहुसंख्यक जनता की अभिलाषाओं के अनुसार शुद्ध भारतीय संविधान नहीं बनाया जाता, कोई भी बिल निरर्थक सिद्ध होगा. अन्ना साहब! हिम्मत हो तो इस दिशा में कार्य कीजिए. आपका आन्दोलन सरकार के साथ नूरा कुश्ती थी. पूंजीवादी प्रचार तंत्र ने इसे दूसरी आज़ादी का आन्दोलन कहा. ड्राफ़्ट कमिटी में अपने आदमियों को रखवाने की मांग बहुत साफ़्ट डिमांड थी. इसे मान लेने में सरकार को क्या कठिनाई हो सकती थी. आपसे जनता की अपेक्षाएं अचानक बढ़ गई थीं. लेकिन हुआ क्या? खोदा पहाड़, निकली चुहिया. गांधीजी ने सीना ठोककर आज़ादी के बाद स्वदेशी के रास्ते रामराज्य की स्थापना की घोषणा की थी. यह बात दूसरी है कि उनकी असामयिक मृत्यु के बाद उनके मानस पुत्रों ने ही उनके सिद्धान्तों, आदर्शों और व्यवस्थाओं की धज्जियां उड़ा दी. गोड्से ने गांधी के शरीर की हत्या की थी, नेहरू-इन्दिरा परिवार ने उनकी आत्मा की हत्या की है. क्या बिना स्वदेशी और समाजवाद के भारत के उत्थान की कल्पना की जा सकती है, रामराज्य का सपना देखा जा सकता है? खादी के झकझक सफ़ेद कपड़े, और टोपी पहनकर ढाई दिन के अनशन के बाद कोई गांधी या जयप्रकाश नहीं बन सकता, सरकारी सन्त जरुर बन सकता है.

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