सरकारी विभागों में किसी भी पद पर नियुक्ति के पूर्व पुलिस जांच (Police verification) अनिवार्य होती है. विपरीत जांच रिपोर्ट की स्थिति में किसी को नौकरी नहीं मिल सकती. इसके अतिरिक्त सरकारी महकमों में चपरासी से लेकर सर्वोच्च अधिकारी को भी वर्ष में एक बार अनिवार्य रूप से सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र देना पड़ता है. यह प्रमाण पत्र नियंत्रक अधिकारी (Controlling officer) द्वारा जारी किया जता है. संदिग्ध सत्यनिष्ठा वाले कर्मचारी या अधिकारी की सेवाएं सीधे समाप्त करने का प्रावधान है. सरकारी नौकरी में संदिग्ध सत्यनिष्ठा के साथ एक चपरासी भी नौकरी नहीं कर सकता, तो एक व्यक्ति मुख्य सतर्कता आयुक्त के उच्च संवैधानिक पद पर नियुक्ति कैसे पा सकता है? सरकार जब स्वयं की बनाई सेवा नियमावली का स्वयं खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही है, तो शेष लोगों के लिए लक्षमण रेखा कैसे खींची जा सकती है? यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर भारत की जनता को चाहिए.
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के आयुक्त के पद पर पी.जे.थामस की नियुक्ति, और कुछ नहीं, बल्कि भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का सीधे-सीधे अनुमोदन है. जिसका दामन खुद दागदार हो, वह वह उच्च स्तर पर फैले भ्रष्टाचार की जांच कैसे कर सकता है? पामोलीन तेल घोटाले में थामस मुख्य अभियुक्त हैं और २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सूत्रधार हैं. समझ में नहीं आता कि उन्होंने कौन सी घुट्टी पिलाई कि हमारे (ईमानदार?) प्रधान मंत्री और (स्वच्छ छवि वाले?) गृह मंत्री को भी जीती मक्खी निगलनी पड़ी. एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोले गए. भारत के एटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया कि थामस के विरुद्ध केसों की फाइलों को सेलेक्शन पैनल की बैठकों में रखा ही नहीं गया. प्रधान मंत्री ने इसकी पुष्टि भी की. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अगले ही दिन प्रधान मंत्री के वक्तव्य का खंडन करते हुए मीडिया को बताया कि प्रधान मंत्री झूठ बोल रहे हैं. थामस के घोटालों की चर्चा चयन समिति की बैठक में विस्तार से की गई थी. स्मरण रहे सतर्कता आयुक्त के चयन के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति में प्रधान मंत्री, गृह मंत्री के साथ लोकसभा में विपक्ष का नेता भी नामित होता है. सुषमा स्वराज ने चयन समिति की बैठक में यह मुद्दा उठाया था, अपना लिखित विरोध भी दर्ज़ कराया था, लेकिन उसे नज़रअदाज कर दिया गया. दो-एक के बहुमत से थामस की नियुक्ति कर दी गई. अगर विपक्ष के नेता की सलाह कोई अर्थ ही नहीं रखती, तो उन्हें चयन समिति में रखने का औचित्य ही क्या है?
दिनांक ३१.१.२०११ को नई दिल्ली में गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने यह स्वीकार किया है कि गत ४, सितंबर, २०१० को चयन समिति (Selection panel) की बैठक में पामोलीन तेल घोटाला और इसमें पी.जे.थामस की संलिप्तता पर विस्तार से चर्चा की गई थी. समिति की महत्त्वपूर्ण सदस्या सुषमा स्वराज ने अपना विरोध भी दर्ज़ कराया था. भारत की जनता यह जानने का अधिकार तो रखती ही है कि किन वाध्यताओं और परिस्थितियों से प्रेरित हो पी.जे.थामस जैसे दागदार अधिकारी को पवित्र सतर्कता आयोग के आयुक्त पद पर नियुक्त किया गया.
आज अपने देश की जो हालत है, वैसी ही हालत सन १९७५ में इन्दिरा गांधी के शासन काल में थी. सत्ता की निरंकुशता और भ्रष्टाचार को न्यायोचित ठहराने के लिए इन्दिरा गांधी ने देश पर आपात्काल थोप दिया था. लेकिन लोकनायक जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति को दबया नहीं जा सका. १९७७ में केन्द्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवाने का श्रेय इन्दिरा गांधी को दिया जा सकता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (३०.१.११) पर पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध किया गया शान्त विरोध प्रदर्शन ढेर सारे संदेश देता है. सत्ताधारी चेत जांय वरना मिस्र से उठी लपटों का कोई भरोसा नहीं. आजकल वैसे ही पछिया हवा (Westen wind) चल रही है.
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