Tuesday, October 12, 2010

भ्रष्टाचार -- एक अनुत्तरित यक्ष-प्रश्न

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे सरकारी विभागों को फ़टकार लगाते हुए दिनांक ९.१०.२०१० को टिप्पणी की -- "इससे बेहतर होता कि सरकार भ्रष्टाचार को वैध कर देती. कम से कम आम आदमी को पता रहेगा कि उसे रिश्वत में कितने पैसे देने हैं." तीन विभागों - आयकर. विक्रीकर और आबकारी का विशेष उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि इन महकमों में बिना पैसे दिये कोई काम नहीं होता. जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने एक अलग मामले में एक शातिर अपराधी की तरफ़ से पेश वकील, वेणु गोपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि मिस्टर वेणुगोपाल, हम आपके स्तर के वकील से इस तरह के लोगों के लिए केस लड़ने की अपेक्षा नहीं करते. महात्मा गांधी भी वकील थे लेकिन इस तरह के लोगों के लिए कभी नहीं लड़े. वेणु गोपाल ने अपनी सफ़ाई में कहा कि महात्मा गांधी की तरह मामलों के चुनाव, अगर वे करने लगे, तो उनके ज्यादातर मुवक्किल हाथ से निकल जाएंगे, फ़ाकाकशी की नौबत आ सकती है. वेणु गोपाल ने कोई झूठ नहीं कहा. दूसरों से सदाचार की अपेक्षा करने वाले न्यायधीशों का दामन क्या पाकसाफ़ है? भारत के सभी न्यायालयों में जज की आंखों के सामने उनका पेशकार मात्र अगली डेट बताने के लिए पैसे लेता है. वे इसे दस्तूर कहते हैं, जो अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है. ट्रान्सपेरेन्सी इन्टरनेशनल इंडिया द्वारा जारी भ्रष्टतम विभागों की सूची में न्याय व्यवस्था को गौरवशाली दूसरा स्थान (रजत पदक) प्राप्त है. पुलिस और राजनेता संयुक्त रूप से प्रथम स्थान (स्वर्ण पदक) पर विद्यमान हैं. भारत के टाप टेन भ्रष्ट विभागों की सूची निम्नवत है. ५ के पूर्णांक में उनके द्वारा अर्जित अंकों को भी दिखाया गया है --
१. पुलिस ४.७
राजनेता ४.७
२. न्याय ४.३
३. रजिस्ट्री ४.०
४. शिक्षा ३.८
कर ३.८
५. आधारभूत सेवाएं ३.७
६. संसद ३.४
७. वाणिज्य एवं निजी क्षेत्र ३.३
८. मीडिया २.७
९. रक्षा २.१
१०. जनता २.०
भ्रष्टाचार, कम या अधिक सभी जगहों पर हमेशा रहा है. इस समय सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि अब इसे सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी है. पहले भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं को जनता अगले चुनाव में ही धूल चटा देती थी -- अब चर्चा भी नहीं करती. आय से अधिक संपत्ति के मामलों में कितने मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट में मुकदमें विचाराधीन हैं, क्या आप गणना कर सकते हैं? स्व. राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व-काल में घोषित किया था कि एक रुपए का मात्र २० पैसा ही विकास पर खर्च होता है, शेष भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. उनके सुपुत्र और भारत के युवराज राहुल गांधी ने अपने बुंदेलखंड के दौरे पर बयान दिया कि १०० पैसों में से मात्र ५ पैसे ही विकास पर व्यय हो पा रहे हैं. देश के वित्त मंत्री के रूप में काम करते हुए श्री चिदंबरम ने कहा था कि १ रूपया विकास पर खर्च करने के लिए सरकार को लगभग ३.५ रुपए का व्यय करना पडता है. मतलब साफ है -- सरकार को भी सारी चीजें पता है और उसके द्वारा इसे मान्यता भी प्राप्त है. सरकार कांग्रेस की है और उसके नेता भ्रष्टाचार की बात स्वीकार करते हैं, लेकिन दूर करने का कोई उपाय नहीं करते. क्या यह सत्य नहीं है कि कांग्रेस के शासन-काल में भ्रष्टाचार चरम पर रहता है. सभी इसमें आकंठ डूबे हैं, समाधान कौन निकलेगा? यह उजागर हो गया है कि राज नेताओं, पूंजीपतियों और भ्रष्ट नौकरशाहों के लाखों करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा हैं. इस अकूत काले धन को वापस लायेगा कौन?
इन्टरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इन्स्टीट्यूट के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान दुनिया के भूखे देशों की श्रेणी में ९४ वाँ है. हमसे आगे ९० पर नेपाल, ८८ पर पाकिस्तान, ६९ पर श्रीलंका व ६६ पर म्यामार हैं. अपने देश में कुल राष्ट्रीय उत्पाद का ८०% कर्ज़ से है, जो दुनिया में सबसे अधिक है. भ्रष्ट देशों की सूची में हमारा स्थान ७२वाँ है. हमसे बेहतर कई अफ़्रीकी देश हैं. आर्थिक आज़ादी की सूची में भारत १०४वें स्थान पर है. विश्व बैंक ने अपने देश को व्यापार करने की दृष्टि से १२०वें स्थान पर, १७८ देशों की सूची में रखा है, जो दक्षिण एशिया में न्यूनतम है.
अपने गुनाहों को छिपाने के लिए सरकार जो तरक्की की तस्वीर पेड मीडिया और सरकारी आंकड़ों द्वारा प्रस्तुत कर रही है, वह धोखा है. चमकता भारत, उभरता भारत, प्रगतिशील भारत, महाशक्ति भारत का दावा मात्र छलावा है. भ्रष्टाचार के राहु ने हमारी सारी योजनाओं पर पूर्ण ग्रहण लगा रखा है. चांद और सूरज तो ग्रहण से मुक्त हो जाते हैं, क्या भारत हो पायेगा? यह एक अनुत्तरित यक्ष-प्रश्न है.

1 comment:

  1. India indeed is a country very paradoxical. A country whose citizens are mostly quite religious are one of the most corrupt people on earth and I find it hard to describe the reason for this predicament. This is a country which had fought hard to earn independence and that fight for independence was led by people whose entire life was based on truth and priciples which were never compromised.So we could not even give an excuse that we are short of people who could lead by example. What then is the reason for this disease which has gripped the whole nation. I think now, honesty after being taught, has to be imposed forcefully. It was thought that the knowledge of honesty was enough for its implementation beacuse it was a matter of morality but in this modern world where morality has little takers there is no such thing called voluntary honesty. I think in this modern era honesty has to give way to disciplne beacuse humans after all are social animals and mostly morality loses to the natural instinct of selfishness.The only way to curb this would be to impose discipline and punish the perpitrators harshly and only then could we be able to fight this monstrosity called corruption.

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