Tuesday, June 23, 2009

पिता

वह तुम्हारा पिता ही है जिसने --
तुम्हें अपनी बाहों में उठाकर हृदय से लगाया था,
जब तुम इस पृथ्वी पर आये थे;
उँगली पकड़ाकर चलना सिखाया था,
जब तुम लड़खड़ाये थे.

वही है वह, जो सदा तुम्हें प्रोत्साहित करता है,
तुम्हारे सारे सद्प्रयासों को दिल से सराहता है,
कोई भी लक्ष्य जब तुम पाते हो,
खुश होता है वह, मन्द-मन्द मुस्काता है.

बाल-मन - जब कोई झटका लगता है, उदास हो जाते हो,
उन क्षणों में तुम्हें मुस्कुराने की प्रेरणा देता है,
गालों पर लुढ़क आये अश्रुकणों को पोंछ,
पेट में गुदगुदी लगा हँसा देता है.

तुम्हारी कभी खत्म न होनेवाली शंकायें,
उससे बात करते ही दूर भाग जाती हैं,
तुम्हारे तरह-तरह के प्रश्न --
धैर्यपूर्वक सुनता है, समाधान निकालता है, मार्गदर्शन करता है,
आगे बढ़ने की हिम्मत अनायास आ जाती है.

कभी सोचा है --
तुम्हारी छोटी उपलब्धि पर भी,
उसकी आँखें क्यों चमक जाती हैं,
आगे तुम बढ़ते हो, गर्व से उसकी छाती,
क्यों चौड़ी हो जाती है !

बार-बार माँ की तरह
सीने से नहीं लगाता है,
वात्सल्य, स्नेह और मधुर भाव,
कोशिश कर छुपाता है.

समय के प्रवाह में,
जब स्वयं पिता बन जाओगे,
बनावटी कठोरता का राज,
खुद ही समझ जाओगे.

फ़ादर्स डे (२१.०६.०९) के अवसर पर रचित

1 comment:

  1. पिता कि जगह हर बच्चे के जिवन मे बरा महत्त्व रखता है,उसको सारि चिजे पिता से सिखने को मिलता है, पिता को जान बुझ कर कभि कठोर बनना परता है क्योकि बच्चा कोइ गलत रास्ते पे ना चल जये. आपने अपने कविता से मेरे मन को भाउक करदिया, कविता के माध्यम से आपने अपने और एक पिता के दिल कि बात कहि है, वाकयि दिल हिला दिया, मेरा आग्रह है कि आप इसि तरह हम लोग को आगे भि अपनि कविता रुपि बुन्दो से भिन्गाते रहेन्गे,

    आमित प्रकाश

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