ओछी हरकत
इतिहास
में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के खिलाफ़ महाभियोग का प्रस्ताव कांग्रेस
के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने उप राष्ट्रपति को सौंपा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा
पर पद के दुरुपयोग समेत पाँच बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल
गांधी बहुत दिनों से महाभियोग प्रस्ताव लाने की ताक में थे। जस्टिस लोया की मृत्यु
को जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वाभाविक मृत्यु करार दिया और किसी तरह की अगली जाँच की संभावना
को खारिज कर दिया तो पप्पू का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने एनसीपी, सपा,
बसपा, माकपा, भाकपा और मुस्लिम
लीग जैसी देशद्रोही पार्टियों से हाथ मिलाते हुए महाभियोग की नोटिस दे ही डाली। सबको
यह तथ्य मालूम है कि कांग्रेस द्वारा लाया गया यह प्रस्ताव किसी भी सूरत में पास होनेवाला
नहीं है। नियमानुसार प्रस्ताव लाने के लिए तो सिर्फ ५० संसद सदस्यों के हस्ताक्षर की
आवश्यकता है लेकिन इसके बाद संबन्धित सदन के सभापति द्वारा तीन सदस्यीय समिति गठित
करने का प्रावधान है। इस समिति के सदस्य होते हैं -- सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज,
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून विशेषज्ञ। यह समिति उचित छानबीन
कर अपनी रिपोर्ट लोकसभा के स्पीकर या राजसभा के अध्यक्ष को देती है। आरोप सही नहीं
पाए जाते हैं तो प्रस्ताव वहीं समाप्त हो जाता है और महाभियोग की प्रक्रिया आगे नहीं
बढ़ाई जाती। अगर आरोप सही पाए गए तो सदन में इसकी चर्चा कराई जाती है। इस दौरान आरोपी
जज को अपने बचाव का पूरा मौका दिया जाता है। चर्चा के बाद मतदान कराया जाता है। प्रस्ताव
की स्वीकृति के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन अनिवार्य है। प्रस्ताव
स्वीकृत होने पर अन्तिम आदेश के लिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
कांग्रेस
को अच्छी तरह पता है कि उसके पास संख्या बल नहीं है। अगर संख्या बल होता तो राहुल गांधी
प्रधान मन्त्री होते। महाभियोग प्रस्ताव का गिरना तय है। इसका उद्देश्य देश के सर्वोच्च
न्यायालय और विशेष रूप से चीफ जस्टिस को बदनाम करना है। अगर महाभियोग प्रस्ताव लाना
ही था तो सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों के खिलाफ़ लाना चाहिए था जिन्होंने पद, मर्यादा,
गोपनीयता और संवैधानिक जिम्मेदारियों की धज्जियां उड़ाते हुए राज नेताओं
की तरह प्रेस कान्फ़ेरेन्स करके सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को तार-तार किया था। उस समय
कांग्रेस और कम्युनिस्ट उन जजों की पीठ थपथपा रहे थे, लेकिन जैसे
ही जस्टिस लोया के मामले में मनमाफिक फैसला नहीं आया, सब के सब
महाभियोग का मिसाइल ले दौड़ पड़े। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस मामले
में दोषी करार दिए जायेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अत: कांग्रेस ने न्यायपालिका को
धमकाने के लिए महाभियोग जैसी शक्ति का राजनीतिक हथियार के रूप में दुरुपयोग का निर्णय
लिया। इस पूरे मामले को हल्के में लेना खतरानाक हो सकता है। यह मामला पूरी
न्यायपालिका की आज़ादी के लिए गंभीर खतरा है। सभी राजनीतिक दलों को इसकी गंभीरता
समझनी चाहिए। महाभियोग की शक्ति बेहद अहम है। इसके दुरुपयोग से संवैधानिक संस्थाओं
पर प्रतिकूल असर होगा। कांग्रेस और राहुल गांधी ऐसा करके सार्वजनिक संस्थाओं को
खत्म करने पर तुले हुए हैं। कई पूर्व न्यायाधीशों ने भी कांग्रेस के इस कदम पर
गंभीर चिन्ता जाहिर की है। अगर इस कार्य को हतोत्साहित नहीं किया गया तो कोई भी
पक्ष जो न्यायालय के निर्णय से संतुष्ट नहीं है क्या बार-बार महाभियोग का प्रस्ताव
लाएगा? माना कि राहुल गांधी अपरिपक्व हैं, लेकिन अन्य विचारशील लोगों को उन्हें
उचित सलाह देनी चाहिए थी। ऐसा प्रस्ताव लोकतन्त्र और संविधान दोनों के लिए खतरे की
घंटी है। सत्ता के लिए बावले पप्पूजी उचित-अनुचित में भेद करने में अक्षम हैं। इसकी
जितनी निन्दा की जाय, कम है।