Saturday, October 14, 2017

बनारस और प्रधानमन्त्री मोदी


मैं बनारस में रहता हूं। मेरी शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई है और अपनी नौकरी के उत्तरार्ध के १८ वर्ष मैंने यहीं व्यतीत किए हैं। एक लंबे समय से मैं बनारस से जुड़ा हूं। मेरे छात्र जीवन में बनारस जैसा था आज भी लगभग वैसा ही है; बस एक परिवर्तन को छोड़कर। पहले सड़क पर हम किसी भी वाहन से या पैदल चल सकते थे। यहां टांगा भी चला करते थे लेकिन अब पैदल चलना भी दुश्वार है। लंका की सड़कें सबसे चौड़ी हैं, फूटपाथ भी है लेकिन बी.एच.यू. के सिंहद्वार से लेकर रविदास गेट तक दिन भर जाम लगा रहता है। आप कार से गोदौलिया जाने की सोच भी नहीं सकते हैं। बढ़ती जनसंख्या, गाड़ियों की संख्या और आवारा साढ़ों तथा गायों की संख्या ने यातायात को दयनीय बना दिया है। सीवर और ड्रेनेज की समस्या ज्यों की त्यों है। मुख्य मार्गों पर भी सीवर का पानी बहते हुए देखा जा सकता है। मोदी जी के यहां से सांसद और प्रधान मन्त्री बनने के बाद बनारसियों की उम्मीदें आसमान छूने लगीं। वे भी जापान के प्रधानमन्त्री के साथ यहां आए और बनारस को क्योटो बनाने की घोषणा की। जबतक अखिलेश यादव मुख्यमन्त्री थे, तब यही कहा जाता था कि केन्द्र सरकार दिल्ली से पैसे तो भेज रही है लेकिन राज्य सरकार न योजना बना रही है और ना ही पैसे का सदुपयोग कर रही है। कुल मिलाकर जनता में यह भाव भरा गया कि राज्य सरकार के असहयोग के कारण बनारस का विकास नहीं हो पा रहा है। लेकिन अब तो दिल्ली में मोदी हैं, लखनऊ में योगी हैं, जिले के सभी सांसद और विधायक भाजपा के हैं तथा नगर निगम भी भाजपा के कब्जे में है। दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि कोई भी सांसद या विधायक कभी भी जनता से संपर्क नहीं करते हैं और ना ही अपने क्षेत्रों का सघन दौरा करते हैं। यहां के ब्यूरोक्रैट्स मोदी जी के बनारस आगमन के समय उन सड़कों को चमका देते हैं, जहां से मोदी जी को गुजरना होता है। उसके बाद उनके कर्त्तव्य की इतिश्री हो जाती है। कुछ परियोजनाओं के विवरण निम्नवत हैं जो वर्षों से पूर्णता की प्रतीक्षा कर रही हैं --
१. केन्द्र सरकार ने अपने पहले बजट में ही बनारस के लिए एक अलग AIMS की स्थापना की घोषणा की थी जिसे योगी जी गोरखपुर के लिए ले उड़े। मैंने स्वयं और बनारस के हजारों लोगों ने बनारस में ही AIMS खोलने के लिए सरकार को अडिग रहने के लिए पत्र लिखे लेकिन कोई जवाब नहीं आया। मोदी से योगी भारी पड़ गए।
२. मंडुआडीह में रेलवे क्रोसिंग के उपर एक फ़्लाईओवर का निर्माण वर्षों से हो रहा है जो अभी भी अधूरा है। फ़्लाईओवर बनने के पहले दोनों तरफ सर्विस रोड बनाई जाती है। बनारस में इसका पालन नहीं किया जाता है।
३. कैन्ट रेलवे स्टेशन के सामने अन्धरा पुल और लहरतारा के फ़्लाईओवर को एक नए फ़्लाईओवर से जोड़ने का काम भी वर्षों से चल रहा है। सन २०१९ तक भी इसके पूरा होने की संभावना नहीं है क्योंकि उसपर कोई काम होता हुआ दिखाई ही नहीं पड़ता। सर्विस रोड की हालत अत्यन्त दयनीय है जिसके कारण २४ घंटे जाम लगा रहता है। रोज ही किसी की ट्रेन छूटती है तो किसी की फ़्लाइट। 
४. मोदी जी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद बनारस के एयरपोर्ट बाबतपुर से शिवपुर तक शहर को जोड़ने के लिए एक लंबे फ़्लाईओवर पर काम शुरु हुआ जो आज भी अधूरा है। बनारस की परंपरा के अनुसार ही सर्विस रोड की हालत दयनीय है। पता नहीं वह शुभ दिन कब आएगा जब यह फ़्लाई ओवर पूरा होगा। इतना तो निश्चित है कि वह शुभ दिन २०१९ के पहले नहीं आएगा।
       मैं मोदीजी का आलोचक या विरोधी नहीं हूं बल्कि उनका प्रबल समर्थक हूं। लेकिन अपने दिल का दर्द दिल में नहीं रखता। बनारस अगर कूड़े का ढेर भी बन जाएगा तो भी वोट मैं मोदीजी को ही दूंगा क्योंकि मुझे यह अटूट विश्वास है कि यह देश उनके नेतृत्व में ही सुरक्षित है। स्थानीय हित को देशहित के लिए कुर्बान करने के लिए मैं तैयार हूं लेकिन सभी बनारसी मेरा अनुकरण करेंगे, इसमें संदेह है। वादे सुनते-सुनते बनारसियों के कान पक गए हैं।

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