दिल्ली
के जामिया नगर में स्थित बटाला हाउस में दिनांक १९, सितंबर, २००८ को आतंकवादी संगठन इंडियन मुज़ाहिदीन के आतंकवादियों के खिलाफ़ एक एनकाउन्टर
किया गया था। इस अभियान का नेतृत्व दिल्ली पुलिस के इंसपेक्टर मोहन चन्द शर्मा ने किया
था। इसमें दो आतंकवादी, आतिफ़ अमीन और मोहम्मद साज़िद मारे गए,
दो अपराधी मोहम्मद सैफ़ और जीशान गिरफ़्तार किए गए और एक आतंकवादी आरिज़
खान भागने में सफल रहा। इस अभियान में बहादुर पुलिस आफिसर मोहन चन्द शर्मा शहीद हुए।
इन आतंकवादियों ने दिल्ली में छः दिन पहले ही, दिनांक १३,
सितंबर, २००८ को सिरियल बम ब्लास्ट किया था,
जिसमें ३० नागरिक मारे गए थे तथा १०० घायल हुए थे। आतिफ़ अमीन इंडियन
मुज़ाहिदीन का चीफ़ बंबर था। उसने २००७ से लेकर २००९ तक दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर, सूरत और फ़ैज़ाबाद
में हुए बम धमाकों की न सिर्फ योजना ही बनाई थी बल्कि अन्जाम भी दिया था। वह मोस्ट
वान्टेड अपराधियों की सूची में शामिल था।
देश
में हो रहे सिरियल बम विस्फोटों से मरनेवालों के प्रति सहानुभूति व्यक्त
करने के बदले कुछ मानवाधिकार संगठन, जामा मिलिया विश्वविद्यालय
के शिक्षक-छात्र और वोट के सौदागर नेतागणों ने बटाला हाउस के एनकाउन्टर को फ़र्ज़ी घोषित
किया और शहीद मोहन चन्द शर्मा को ही अपराधी घोषित कर दिया। भांड मीडिया ने भी भी खूब
बवाल मचाया। आपनी ही पार्टी के कार्यकाल में घटित इस घटना के लिए कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी ने माफ़ी मांगी और आतंकवादियों के घर जाकर आंसू भी बहाए। घटना को इतना
तूल दिया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस घटना की जांच
कर दो महीने में अपनी रिपोर्ट देने का आदेश पारित किया। मानवाधिकार आयोग ने सघन जांच
के उपरान्त दिनांक २२, जुलाई, २००९ को अपनी
रिपोर्ट पेश की। आयोग ने एन्काउन्टर को सही बताया तथा दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट भी
दी। बाद में स्व. मोहन चन्द शर्मा को मरणोपरान्त उनके अद्भुत शौर्य के लिए राष्ट्रपति
द्वारा अशोक चक्र भी प्रदान किया गया। राहुल, सोनिया,
मुलायम, मायावती, येचुरी
और ओवैसी तब भी आतिफ़ अमीन के लिए आंसू बहाते रहे।
ऐसी
ही एक घटना दिनांक १५,
जून, २००४ को अहमदाबाद के बाहरी क्षेत्र में हुई।
अभी-अभी, अदालत को दी गई अपनी गवाही में कुख्यात आतंकवादी डेविड
हेडली ने यह स्वीकार किया है कि कि उस मुठभेड़ में मारी गई महिला इशरत जहां लश्करे तोयेबा
की आत्मघाती हमलावर थी। वह और उसके तीन साथी, ज़ावेद शेख,
ज़िशान जौहर और अमज़द अली राणा तात्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की
हत्या की योजना और उद्देश्य से अहमदाबाद आए थे। सब के सब पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे
गए। अमेरिका से वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा मुंबई कोर्ट को दी गई हेडली की गवाही
के बाद कहने को कुछ भी नहीं रह जाता। लेकिन देशद्रोह की इस घटना को भी नरेन्द्र मोदी
को बदनाम करने के लिए बुरी तरह उपयोग में लाया गया। पूरे देश में हाय-तोबा मचाई गई।
कांग्रेस के नेता, विशेष रूप से सोनिया और राहुल इसमें सबसे आगे
थे। बिहार के मुख्य मंत्री ने तो इशरत जहाँ को बिहार की बेटी घोषित किया | केन्द्रीय
जांच एजेन्सियों का जबर्दस्त दुरुपयोग किया गया। गृह मंत्रालय के जिम्मेदार अधिकारियों
के विरोध के बावजूद सन् २०१३ में सीबीआई की जांच बिठाई गई। मोदी और अमित शाह को फंसाने
के लिए जमीन-आसमान एक किए गए। कई कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मुअत्तल किया
गया और उन्हें जेल की हवा भी खिलाई गई। हेडली के खुलासे के बाद केन्द्र सरकार की विश्वसनीय
गुप्तचर एजेन्सी आई.बी. के पूर्व निदेशक राजेन्द्र कुमार ने दिनांक १३, फरवरी, २०१६ को यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया है कि
सोनिया गांधी के निर्देश पर उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने आईबी को निर्देश दिया
था कि चाहे जैसे हो नरेन्द्र मोदी को इस मामले में फंसाओ। इसके लिए अगर तथ्यों की अवहेलना
करनी पड़े, तो वो भी किया जाये। जिन कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों
ने गलत काम करने से मना किया उन्हें सीबीआई द्वारा फ़र्ज़ी मामलों में फंसाया गया। राजेन्द्र
कुमार भी इसके शिकार रहे। एक ईमानदार पुलिस अधिकारी बंजारा आठ साल जेल में रहने के
बाद हाल ही में बाहर आए हैं। हेडली की गवाही के बाद श्री कुमार ने सीबीआई के उन अधिकारियों
और कांग्रेस के उन नेताओं को अदालत में घसीटने की घोषणा की है जिन्होंने उन्हें फ़र्ज़ी
मामलों में फंसाने की कोशिश की।
तीसरी
आंख खोलनेवाली घटना कुछ ही दिन पूर्व जे.एन.यू. में घटी। वैसे तो यह विश्वविद्यालय
अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का केन्द्र रहा है, लेकिन
हाल की घटना ने तो सारी हदें पार कर दी। विद्यार्थियों, छात्रसंघ
के अध्यक्ष और शिक्षकों की उपस्थिति में कुख्यात आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु की बरसी मनाई गई,
उसे शहीद घोषित किया गया, कश्मीर की आज़ादी के लिए
नारे लगाए गए, भारत को बर्बाद करने का संकल्प लिया गया,
पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए और राष्ट्रवाद को जी भरकर गालियां
दी गईं। समझ में नहीं आ रहा था कि इसका नाम जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (JNU)
है या जेहादी नक्सल यूनिवर्सिटी? देशव्यापी विरोधों
से सचेत हुई केन्द्र सरकार अचानक नींद से जागी और विश्वविद्यालय से कुछ देशद्रोही छात्रों
को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। मार्क्सवादियों और कांग्रेसियों को रोटी
सेंकने का अच्छा मौका मिल गया। सीताराम येचूरी और राहुल गांधी तत्काल अराजक और देशद्रोही
छात्रों की हौसल अफ़जाई के लिए परिसर में पहुंच गए। ये राजनेता मोदी के सत्ता में आने
के कारण इतना बौखला गए हैं कि राष्ट्रविरोधी शक्तियों का समर्थन करने और उनका साथ देने
में इन्हें तनिक भीशर्म नहीं आती। वैसे भारत
का इतिहास देखने के बाद कोई विशेष आश्चर्य नहीं होता है। अंग्रेजों के शासन-काल में
भी एक वर्ग ऐसा था जो आंख बंदकर उनका समर्थन करता था। उन्हें राय बहादुर, खान बहादुर और सर की उपाधि से नवाज़ा जाता था। आज भी यह कहने वाले मिल जायेंगे
कि अंग्रेजों का राज्य आज़ादी से अच्छा था।