लोकतंत्र, सारे
तंत्रों में सर्वश्रेष्ठ तंत्र माना जाता है। विश्व में राजतंत्र सबसे प्राचीन तंत्र
है। आज भी इस आधुनिकता की आंधी के बावजूद विश्व के कई देशों में राजतंत्र विद्यमान
है। अधिनायक तंत्र राजतंत्र का ही दूसरा रूप है। कभी-कभी अधिनायकवाद भी लोकतंत्र की
ऊंगली पकड़ कर आता है। जर्मनी में हिटलर और भारत में आपात्काल के समय इन्दिरा गांधी
इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। कई देशों में एक व्यक्ति की तानाशाही है, तो कई में एक पार्टी की।
हमारा
अपना देश जहाँ उच्छृंखल लोकतंत्र का सबसे बड़ा उदाहरण है, तो
वही पड़ोसी चीन एक पार्टी की तानाशाही का। लेकिन
जहाँ तक देश के कल्याण और विकास की बात है, इसमें कोई दो राय
नहीं कि देश के कल्याण के लिए समर्पित एक पार्टी की सीमित तानाशाही उच्छृंखल लोकतंत्र
से बेहतर है।
भारत
में लोकतंत्र के तरह-तरह के प्रयोग किए गए। ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्रपति -- सबके
सब जनता द्वारा ही प्रत्यक्ष या परोक्ष पद्धति से चुने जाते हैं। इसका परिणाम यह निकला
है कि एक ही क्षेत्र में एक ही आदमी के कई प्रतिनिधि फल-फूल रहे हैं। एक ही क्षेत्र
का,
ग्राम प्रधान भी प्रतिनिधित्व करता है, ग्राम सभा
का सदस्य भी, ब्लाक सभा, जिला पंचायत का
सदस्य और अध्यक्ष भी। विधान सभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य भी अलग से प्रतिनिधित्व करते हैं। शहरों मे मेयर,
नगरपालिका अध्यक्ष, वार्ड कमिश्नर आदि अलग से लोकतांत्रिक
प्रतिनिधि हैं। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों से इन्हें सरकार की तरफ से कोष भी उपलब्ध
कराए जाते हैं -- विकास के नाम पर। इन कोषों से क्षेत्र का विकास कितना होता है और
प्रतिनिधि का कितना -- यह किसी से छुपा नहीं है। हमारे प्रतिनिधियों ने अपने लिए पेंशन
की भी व्यवस्था कर रखी है। वर्तमान संरचना में सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में अब पेंशन
की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन कोई भी एमएलए या एमपी यदि एक साल भी सदन का सदस्य रह
गया तो मरते दम तक पेंशन का हकदार बन जाता है। संसद या विधान सभा का सजीव प्रसारण देखकर
लगता है जैसे हम मछली बाज़ार का सीधा प्रसारण देख रहे हों। सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों
के मल्लयुद्ध पर तो रोक लगा दी है, लेकिन संसद और विधान सभाओं
में नित्य हो रहे मल्लयुद्ध पर अंकुश लगाने में वह भी बेबस है। भारत में लोकतंत्र मखौल
बनता जा रहा है। इस देश में कोई पाकिस्तानी झंडा लहरा सकता है, तो कोई चीनी, कोई देश से अलग होने की बात कर सकता है,
तो कोई तोड़ने की। कोई चार शादी कर सकता है, तो
कोई कुँवारा ही मरने के लिए मज़बूर है। हर नेता वोट हासिल करने के लिए तुष्टिकरण की
कोई भी सीमा लांघने के लिए स्वतंत्र है। यहाँ लोकतंत्र का असली मकसद रह गया है,
सरकारी याने जनता के पैसों की खुली लूट का लाईसेंस। अपने देश की दुर्गति
और पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है - हमारा उच्छृंखल लोकतंत्र ।
कल्पना
कीजिए कि चीन जैसे विशाल देश में अपने देश की तरह ही उच्छृंखल लोकतंत्र होता! क्या
वह विश्व शक्ति बन पाता?
क्या वह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी को इतना उन्नत जीवन-स्तर प्रदान कर
पाता? शायद कभी नहीं। वहाँ एक पार्टी की तानाशाही अवश्य है,
लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि वह पार्टी देश हित के लिए समर्पित कर्यकर्ताओं
और नेताओं की समर्पित पार्टी है। एक-दो बार भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने पर वहाँ
की सरकार ने मंत्रियों को भी फाँसी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। हमारे यहाँ
जेल जाने के बाद भी लालू, राजा, जय ललिता
ऐश कर रहे हैं।
ऐ उच्छृंखल लोकतंत्र! कभी-कभी मेरे दिल में खयाल
आता है कि जैसे तुझको बनाया गया है हमें लूटने के लिए। तू अबसे पहले अमेरिका में बस
रहा था कहीं,
तुझे इंडिया में बुलाया गया है, हमें ठगने के लिए।
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