एक
समय था, जब अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के प्रतिबिंब माने जाते थे। अन्ना आन्दोलन
के दौरान आईआईटी, चेन्नई में उनका भाषण सुनकर मैं इतना प्रभावित
हुआ कि उनका प्रबल प्रशंसक बन गया। अन्ना ने यद्यपि घोषित नहीं किया था, फिर भी भारतीय जन मानस उन्हें अन्ना के प्रवक्ता और उत्तराधिकारी के रूप में
मान्यता देने लगा था। उन्होंने तात्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार
के आरोप क्या लगाए, भाजपा समेत आरएसएस भी हिल गया। संघ के ही
निर्देश पर गडकरी को भाजपा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र भी देना पड़ा। गडकरी ने अदालत
की शरण ली। केजरीवाल कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके। उन्होंने गडकरी से माफ़ी मांगकर
इस घटना का पटाक्षेप किया। गडकरी को उस समय निश्चित रूप से नुकसान उठाना पड़ा,
लेकिन केजरीवाल को ज्यादा क्षति हुई। उनकी स्थापित विश्वसनीयता का ग्राफ
अब X-Axis पर लुढ़कने लगा।
इस
समय केजरीवाल लालू और दिग्विजय सिंह की श्रेणी में पहुंच गए हैं। मैं आरंभ से ही खेल
संघों पर राजनीतिक हस्तियों के नियंत्रण के विरुद्ध रहा हूं। जेटली, शरद पवार,
राजीव शुक्ला जैसे कद्दावर नेताओं को क्रिकेट-प्रबन्धन ज्यादा भाता है।
मात्र इस कारण उनकी चरित्र हत्या नहीं की जा सकती। केजरीवाल ने अपने प्रधान सचिव के
भ्रष्टाचार और उनके कार्यालय पर सीबीआई के छापे से जनता का ध्यान हटाने के लिए बदले
की भावना से प्रेरित हो बिना किसी प्रमाण के अरुण जेटली की चरित्र-हत्या करने की अपनी
ओर से पूरी कोशिश की। डीडीसीए में हुई कथित अनियमितता के लिए जेटली को दोषी ठहराकर
उनसे इस्तीफ़े की मांग भी कर डाली। इसके पूर्व केजरी सरकार ने ही डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार
की जांच के लिए अपने मनपसंद त्रिसदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट भी
आ गई है। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अरुण जेटली के नाम का उल्लेख भी नहीं किया
है। ज्ञात हो कि इसके पूर्व शीला दीक्षित की
कांग्रेसी सरकार ने भी अरुण जेटली को घेरने का पूरा प्रयास किया था और डीडीसीए में
कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक आयोग का गठान किया था। उसने भी जेटली को क्लीन चिट
दी थी। मोदी और अन्य भाजपा नेता राजनीतिक असहिष्णुता के हमेशा से शिकार रहे हैं। पूर्व
प्रधान मंत्री नरसिंहा राव ने आडवानी को हवाला काण्ड में लपेटने के लिए भरपूर प्रयास
किया था, चार्ज शीट भी दाखिल की थी; लेकिन
आडवानी बेदाग सिद्ध हुए। नरेन्द्र मोदी पर जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कांग्रेस
ने एक दर्ज़न से अधिक मुकदमे दर्ज़ कराए। सिट से लेकर सीबीआई तक ने वर्षों तक गहन जांच
की, लेकिन सत्य, सत्य ही रहा। मोदी पर एक
भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। आज वे देश के प्रधान मंत्री हैं। देश ही नहीं विदेश भी उनके
मुरीद हैं।
केजरीवाल कोई आज़म खां, ओवैसी या लालू यादव नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी से
इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। आईआरएस में एक जिम्मेदार अधिकारी के पद की शोभा बढ़ाई है।
किसी पर अनर्गल आरोप लगाना, कम से कम उन्हें शोभा नहीं देता है।
राजनीति में आने के बाद केजरीवाल इतना नीचे गिर सकते हैं, किसी
ने कल्पना भी नहीं की होगी।