Monday, August 12, 2013

राष्ट्रीय सुरक्षा और घिनौनी राजनीति

        पिछले शुक्रवार को जम्मू के किश्तवाड़ में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कई लोग मारे गए। हिन्दुस्तान में दंगे और वो भी जम्मू-कश्मीर में कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। सांप्रदायिक हिंसा के कारण ही पूरी कश्मीर घाटी से सभी हिन्दू वर्षों पहले पलायन कर गए। अब जम्मू भी कट्टरपंथियों की निगाह में खटक रहा है। यह उतनी बुरी बात नहीं है जितना इन घटनाओं पर छद्म सेक्यूलरवादियों का रवैया और उनके वक्तव्य। किश्तवाड़ में दस दिन पहले से ही पाकिस्तानी तत्त्वों ने माहौल बिगाड़ने की हर संभव कोशिश की थी। जगह-जगह अफ़ज़ल गुरु और मकबूल भट्ट की तस्वीरें चिपकाई गई थीं। हर नमाज़ के बाद मस्ज़िद से भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए जाते थे। सरकार को खुफ़िया तंत्रों के माध्यम से इसकी पूर्ण जानकारी थी। लेकिन सरकार निष्क्रिय बनी रही और अन्ततः १० अगस्त को दंगा भड़क ही गया। दंगे में मारे गए लोगों की संख्या का सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है, क्योंकि सरकार ने मीडिया समेत किसी भी नेता को वहां पहुंचने नहीं दिया। घटना की निन्दा करने और उसपर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने के बदले वहां के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने किश्तवाड़ के दंगे की तुलना २००२ के गुजरात दंगों से करके उसे न्यायोचित ठहराने की कोशिश की। कांग्रेस ने संसद के अन्दर और बाहर भी उमर अब्दुल्ला और फ़ारुख अब्दुल्ला का समर्थन किया। दंगे तो दंगे हैं - वे चाहे गुजरात में हों, हैदराबाद में हों या कश्मीर में हों, उनकी निन्दा ही होनी चाहिए। इससे कम कुछ भी नहीं। क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए एक दंगे की आड़ में दूसरे दंगे को न्यायोचित ठहराना देशद्रोह के अलावा और कुछ भी नहीं। यह प्रवृति विघटन की ओर ले जाती है।
अब तो सैनिकों की शहादत पर भी राजनीति करने से कांग्रेसी बाज़ नहीं आ रहे हैं। पाकिस्तानी हिन्दुस्तानी सैनिकों का सिर काटकर ले जाते हैं, सरकार चुप रहती है। गश्त करते समय भारत के पांच सैनिकों की पाकिस्तानी सेना निर्मम हत्या कर देती है; रक्षा मंत्री उसे आतंकवादी कार्यवाही कहते हैं। एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान एक कांग्रेसी नेता ने कहा कि भाजपा के शासन के दौरान सीमा पर पाकिस्तानी अतिक्रमण और जवानों की हत्या के मामले अधिक हुए थे, इसलिए वर्तमान में मात्र पांच जवानों की शहादत पर ज्यादा शोरगुल मचाने की ज़रुरत नहीं है। जवानों की शहादत और जीडीपी के आंकड़ों को समान समझने की आदत सत्ताधारी पार्टी कब छोड़ेगी? ऐसा संवेदनहीन वक्तव्य कांग्रेस पार्टी का ही कोई नेता दे सकता है। सेक्यूलर बिरादरी में नये-नये शामिल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रियों ने तो हद ही कर दी। आतंकी इशरत जहां को बिहार की बहादुर बेटी बताने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शहीद हुए बिहार के चार सपूतों के शवों को देखने हवाई अड्डे पर जाना तो दूर श्रद्धांजलि के दो बोल भी नहीं बोले। उनके मंत्री ने तो यहां तक कहा कि सेना और पुलिस में तो लोग शहीद होने के लिए ही जाते हैं। क्या भारत के सभी मुसलमानों को इन सेकुलरवादियों ने पाकिस्तानी मान रखा है? क्या पाकिस्तान विरोध मुस्लिम विरोध का पर्याय बन चुका है? सेक्यूलरवादी अगर ऐसा मानते हैं, तो यह भारत के सभी मुसलमानों का घोर अपमान है। महज़ वोट की राजनीति के लिए देश की अस्मिता का बार-बार अपमान घोर निन्दनीय है।
जहां तक सांप्रदायिकता की बात है, तो इस देश में कांग्रेस से बड़ी दूसरी सांप्रदायिक पार्टी न हुई है और न होगी। इतिहास गवाह है कि इस पार्टी ने सांप्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा किया जिसके फलस्वरूप १९४७ में पूरे देश में भयंकर दंगे हुए जिसमें लाखों हिन्दू-मुसलमान मारे गए। उन सांप्रदायिक दंगों का कलंक अभी ज्यों का त्यों था कि इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसियों ने देशव्यापी हिन्दू-सिक्ख दंगा करा दिया जिसमें हजारों सिक्ख दंगे की भेंट चढ़ गए। सेक्यूलरवादियों को इन घटनाओं की याद नहीं आती। राष्ट्र पर आक्रमण और दंगों को क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के चश्मे से देखना राष्ट्रद्रोह के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। इसकी बस निन्दा ही होनी चाहिए, तुलना नहीं।

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