लोकतन्त्र
१९४७ के पहले --
अपने देश में,
अंग्रेजों का राज था,
उन्हीं के नियम थे,
उन्हीं के कानून थे,
विक्टोरिया साम्राज्य था.
सत्ता उन्हीं की,
मर्जी उन्हीं की,
कार्यपालिका उन्हीं की,
न्यायपालिका उन्हीं की.
तब लोकतन्त्र नहीं था,
लेकिन हमारे पास थे --
मंगल पांडेय और लक्ष्मी बाई,
वीर कुँवर, बहादुर भाई,
अशफ़ाक उल्ला खाँ,
तात्या और नाना,
जोशे जिगर, केसरिया बाना.
महामाना मालवीय, महात्मा गाँधी,
तिलक, पटेल, सुभाष की आँधी.
बिस्मिल, सावरकर, भगत, आजाद,
जय प्रकाश नारायण, राजेन्द्र प्रसाद.
आज हमारे पास,
अपना कनून है,
अपना संविधान है,
पर किसी प्रश्न का,
क्या कोई समाधान है?
दुनिया का सबसे बड़ा,
हमारा लोकतन्त्र है,
महँगा भी सबसे बड़ा,
अपना जनतन्त्र है.
करोड़पतियों की संसद है,
नेताओं का अम्बार है,
गोली, धमाकों से,
देश गुलजार है.
वाह रे लोकतन्त्र !
प्रवाह को ही मोड़ा है,
माफ़िया-राजनीति का,
बेमिसाल जोड़ा है.
उत्तर सुखराम हैं,
दक्षिण में गोड़ा हैं,
पश्चिम में ठाकरे,
तो पूरब में कोड़ा हैं.