Thursday, August 27, 2009

अमर गायक मुकेश

प्रख्यात संगीतकार सरदार मलिक कहा करते थे - जब मुकेश गाते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे सात बाँसुरी के मीठे स्वर एक साथ निकल रहे हों.संगीतकार अनिल विश्वास मुकेश की मीठी आवाज के दीवाने थे. वे कहते थे - मुकेश के स्वर में जो विशेष माधुर्य और संप्रेषण था, वह किसी अन्य गायक में नहीं पाया गया. फ़िल्म इतिहास के आरंभ से लेकर आजतक मुकेश के गाये जितने गीत लोकप्रिय हुए उतने गीत किसी अन्य कलाकार के नहीं. वे जो भी गाते थे "हिट" हो जाता था. यह मात्र एक संयोग नहीं था. उन्होंने धन कमाने के लिये ही अपने गायन का उपयोग नहीं किया. उन्हें जिन गानों को स्वर देने का प्रस्ताव मिलता था, पहले उनकी गुणवत्ता की परीक्षा कर लेते थे, पश्चात अपनी सहमति देते थे. दस में से दो या तीन प्रस्ताव ही उनकी कसौटी पर खरे उतरते थे और वे उन्हीं गानों को अपना स्वर देते थे. यही कारण रहा कि उनके समकालीन गायको की तुलना में उनके द्वारा गाए गीतों की संख्या बहुत कम है, लेकिन लोकप्रिय गानों की संख्या बहुत अधिक. संगीतकार कल्याणजी के अनुसार मुकेश द्वारा गाया कोई भी गीत गुमनामी के अंधेरे में कभी गुम नहीं हुआ. वे जो भी गाते थे, जनता की जुबान पर चढ़ जाता था. मन्ना डे कहते हैं कि वे स्वयं और अन्य गायक भी मुकेशजी की तरह हिट गाने गाना चाहते थे लेकिन हिट गीत गाने का सौभाग्य तो सिर्फ़ मुकेशजी के ही पास था. उनकी आवाज़ में एक जादू था जिसका स्पर्श पाते ही कोई भी गीत जन-जन को प्रिय हो जाता था.
अमर गायक मुकेश चन्द्र माथुर का जन्म देश की राजधानी दिल्ली में २१, जुलाई, १९२३ को हुआ था. संगीत से लगाव होने के बावजूद भी संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की उन्होंने. शायद उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं थी. एक बार सुनकर कठिन से कठिन राग, धुन या गीत की हू-बहू नकल उतार देने की प्रतिभा उन्हें जन्म से प्राप्त थी. मित्रों, स्वजनों और आसपास के लोगों से प्राप्त प्रशंसा ने कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास भर दिया था उनमें. वे रेडियो आर्टिस्ट बनना चाहते थे. वहाँ आडियो टेस्ट भी दिया, लेकिन संगीत विद्या का कोई प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं कर पाये, लिहाजा छाँट दिये गये. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. मुंबई में एक बड़ा कार्यक्षेत्र उनकी प्रतीक्षा कर रहा था. उन्होंने अपनी किस्मत मुंबई में आजमाई. प्रख्यात अभिनेता मोतीलाल उनके दूर के रिश्तेदार थे. मुंबई पहुँचकर उन्ही के घर में सिर छुपाने की जगह पाई. प्रयास और संघर्ष चलते रहे. एक रात मोतीलाल के यहाँ पार्टी चल रही थी. फ़िल्म उद्योग की सभी प्रमुख हस्तियाँ उसमें मौजूद थीं. युवक मुकेश ने कुन्दल लाल सहगल का एक एक लोकप्रिय गीत उन्ही की आवाज और तरन्नुम में सुनाकर सबको सम्मोहित कर दिया. महान संगीतकार अनिल विश्वास ने इस नायाब हीरे को करीब से देखा, सुना और परखा. अपनी अगली फ़िल्म "पहली नज़र" का एक गीत गाने का मुकेश के सामने प्रस्ताव रखा. तकदीर जैसे स्वयं चलकर उनके पास आई थी. मुकेश ने "हाँ" कर दी. और इस तरह रिकार्ड हुआ अमर गायक के स्वर में पहला अविस्मरणीय गीत - दिल जलता है तो जलने दे, आँसू न बहा फ़रियाद न कर...मधुर आवाज़, अदभुत भाव संप्रेषण, पूर्ण परिपक्वता और कर्णप्रिय धुन का अनोखा संगम था इस ऐतिहासिक गीत में. पहले ही गाने ने लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए. मुकेश रातो-रात स्टार बन गए. वह जमाना कुन्दन लाल सहगल का था. वे भी मुकेश से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. उन्होंने मुकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. उनकी मधुर आवाज़ पर मुग्ध हो सहगल ने अपना निजी हारमोनियम मुकेश को उपहार में दिया जिसपर वे जीवनपर्यंत रियाज़ करते रहे. सचमुच मुकेश ही सहगल के सच्चे उत्तराधिकारी थे. स्वर सम्राट का उत्तराधिकारी एक स्वर सम्राट ही हो सकता था. एक बार विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम को मुकेश ने प्रस्तुत किया. एक घंटे के कार्यक्रम में उन्हें अपनी पसंद के गाने अपने संस्मरण के साथ सुनाने का शुभवसर प्राप्त हुआ. उन्होंने पूरे कार्यक्रम में सहगल के ही गाने सुनवाए. अपना भी कोई गाना नहीं सुनाया.
मुकेश मुंबई आए थे गायक-अभिनेता बनने का सपना लेकर, लेकिन अभिनेता के रूप में वे सफल नहीं हो पाए. पश्चात उन्होंने अपना सारा ध्यान गायकी में लगाया जहाँ उन्होंने सफलता और उत्कृष्टता के अनेक मील के पत्थर स्थापित किए. उनके पुत्र नितिन मुकेश ने उनके पदचिह्नों पर चलते हुए गायन का क्षेत्र चुना और सफलता भी प्राप्त की लेकिन अभिनय करने की मुकेश की अधूरी इच्छा की पूर्ति उनके पोते नील नितिन मुकेश ने की है. नील हिन्दी रजत पट के एक व्यस्त, सफ़ल और लोकप्रिय अभिनेता हैं. मुकेश की आत्मा निश्चित रूप से सन्तुष्ट और प्रसन्न हो रही होगी.
नये गायकों और संगीतकारों को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें अवसर प्रदान करना मुकेश का स्वभाव था. बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि आज के प्रसिद्ध अभिनेता ऋतिक रोशन के दादा महान संगीतकार रोशन को मुकेश ने ही अपनी फ़िल्म मल्हार में पहली बार संगीत देने का अवसर दिया था. फ़िल्म विश्वास में मनहर ने एक युगल गीत "आपसे हमको बिछड़े हुए एक जमाना बीत गया" में मुकेश के लिये अपनी आवाज़ डब की थी. मुकेश जब रिकार्डिंग के लिए पहुँचे तो मनहर की आवाज़ सुन सुखद आश्चर्य से भर गये. वे उसकी आवाज़ से इतना प्रभावित हुए कि गाने को अपनी आवाज़ में रिकार्ड नहीं कराया. गीत मनहर की आवाज़ में ही रहने दिया गया. इस तरह मनहर को गायक के रूप में पहचान मिली. महेन्द्र कपूर को भी संघर्ष के दिनों में मुकेशजी ने हमेशा प्रोत्साहित किया. वे अपना जन्मदिन सार्वजनिक रूप से मनाने से परहेज करते थे. उसदिन वे चुपके से गाड़ी में बैठ चल देते और फुटपाथ के किनारे सोए बेसहारा लोगों को कम्बल बाँटते. वे एक महान गायक तो थे ही, साथ में एक संवेदनशील इंसान भी थे. यही कारण था कि वे अपने गीतों में उच्चतम स्तर का मधुर भाव भरने में सदैव सफल रहते थे.
एक अच्छी शुरुआत मिलने के बाद मुकेश ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा - सफ़लता की सीढ़ियाँ चढ़ते गये, चढ़ते गये. जिस आकाशवाणी ने उन्हें कभी रिजेक्ट किया था, वही आकाशवाणी प्रतिदिन उनके सैकड़ों गाने बजाकर अपने को धन्य मानती है. ऐसी कौन सी विधा है जिसे मुकेश ने अपना मधुर स्वर न दिया हो! लोकप्रिय गानों की शृंखला जो "दिल जलता है" से आरंभ हुई थी, "कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है" पर उनकी असामयिक मृत्यु के कारण समाप्त हुई. भारत का ऐसा कौन बालक, युवा या वृद्ध होगा जिसने मुकेश के गाने न गुनगुनाए हों! दिल जलता है, तू कहे अगर जीवन भर मैं गीत सुनाता जाऊँ, आवारा हूँ, आसमान का तारा हूँ, दम भर जो उधर मुँह फेरे, मेरा जूता है जापानी, सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी, मैं आशिक हूँ बहारों का, बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम, महलों ने छीन लिया बचपन का प्यार मेरा, सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं, छलिया मेरा नाम, डम डम डिगा डिगा, ये मेरा दीवानापन है, होठों पे सच्चाई रहती है, बोल राधा बोल, सजन रे झूठ मत बोलो, सावन का महीना पवन करे शोर, कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है, एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल...........अपने ३५ साल के कैरियर में मुकेश ने हजारों कर्णप्रिय और लोकप्रिय गाने गाए जो आज भी उतने ही ताज़े लगते हैं जितने पहली बार फ़िज़ा में बजने पर लगे थे. मुकेश ने हर तरह के गीत गाए हैं - हँसी, रोमांस, देशभक्ति, खुशी और गम. जो भी गाया पूर्णता और परिपक्वता से. संगीत निर्देशक के निर्देश पर भी वे रुकते नहीं थे. रियाज़ से सन्तुष्ट होने पर ही रिकार्डिंग की सहमति देते थे. मेरा नाम जोकर का कालजयी गीत, जाने कहाँ गए वो दिन, उन्होंने सत्रह दिनों के अभ्यास के बाद रिकार्ड कराया था. पाश्चात्य और शास्त्रीय संगीत क अद्भुत संगम है इस गीत में. मुकेश की मधुर आवाज़ में उभरते दर्द ने इसे सर्वकालिक महान गीत बना दिया है.
दर्द भरे गीतों के वे शहंशाह थे. आज भी उनका सिंहासन ज्यों का त्यों है. ऐसा लगता है मुकेश की आवाज़ ईश्वर ने दर्द भरे गीतों के लिए ही बनाई थी. मधुर रेशमी आवाज़ के साथ भावों का गहराई से संप्रेषण उन्हें अद्वितीय गायक बना देता था, और गीत बन जाते थे सदाबहार एवं अविस्मरणीय. सामान्यतया हाई पिच पर गाने पर गायक-गायिकाओं के स्वर पतले और कुछ कर्कश हो जाते हैं, लेकिन मुकेश की आवाज़ हाई पिच पर भी न केवल अपरिवर्तित रहती थी, बल्कि कुछ और मधुर हो जाती थी. यह विशेषता सिर्फ़ उन्ही के पास थी.
हिन्दी फ़िल्मों में समकालीन ऐसा कोई अभिनेता नहीं जिसने उनका प्लेबैक न लिया हो, ऐसा कोई संगीतकार नहीं जिसने उनसे गीत गवाकर अपने को धन्य न माना हो. राज कपूर की तो वे आवाज़ ही थे. लेकिन मुकेश स्वयं को धन्य मानते थे, तुलसीकृत रामचरित मानस की चौपाइयाँ गाकर. बालकांड से लेकर उत्तरकांड के प्रमुख अंशों को प्रख्यात संगीतकार जयदेव के निर्देशन में उन्होंने अपने मधुर स्वर में रिकार्ड कराया था जिसके लिये उन्होंने कोई पारिश्रमिक नहीं लिया. जीवन के सभी रसों का समावेश है उनके मानस-गान में. बालकांड का वात्सल्य-रस, अयोध्याकांड का करुण-रस, अरण्यकांड का विरह-रस, लंकाकांड का रौद्र-रस तथा सुन्दरकांड एवं उत्तरकांड के भक्ति-रस की गंगा जो मुकेश के स्वर में प्रवाहित हुई है, वह अद्भुत है. क्या मुकेश के पहले भी इतना डूबकर किसी ने मानस-पाठ किया था? शायद नहीं. तभी तो नित्य ही प्रातः आँख खुलने पर किसी न किसी मंदिर के ध्वनि विस्तारक यंत्र से रामायण की चौपाइयाँ उस अमर गायक की आवाज़ में गूँजती हुई सुनाई पड़ती हैं. भारत के प्रत्येक रामायण प्रेमी के घर में तुलसी के रामचरित मानस के साथ मुकेश द्वारा गाये रामायण के कैसेटों ने भी स्थाई आवास बना लिया है. इससे बढ़कर उस अमर गायक को और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है !
अपने उत्कृष्ट गायन के लिये ऐसा कौन सा पुरस्कार है जिसे मुकेश ने प्राप्त न किया हो. सर्वश्रेष्ठ गायक के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार से लेकर फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड कई बार उन्हें प्राप्त हुए.वे उस ऊँचाई पर पहुँच गए थे कि पुरस्कारों कि गरिमा उनसे बढ़ने लगी थी, लोकप्रियता के उस शिखर पर विद्यमान थे जहाँ पहुँच पाना किसी के लिए एक सपना होता है. करोड़ों भारतवासियों के हृदयों पर उनका अखंड साम्राज्य था और रहेगा. २७, अगस्त १९७६ को डेट्रायट, कनाडा में एक संगीत-समारोह के दौरान एक प्रचंड हृदयाघात ने असमय ही उनको हमसे छीन लिया. लेकिन मुकेश आज भी अमर हैं. कलाकार की कभी मौत नहीं होती. उनके गीत आज भी वातावरण में वैसे ही गूँजते हैं --
एक दिन मिट जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल.

1 comment:

  1. I remember my father used to sing only Mukesh's songs and so his voice was my introduction to the world of hindi music and for a very long time the only voice I knew was only Mukesh's. His deep voice full of pathos still vibrates in my mind. I believe happiness makes us forget lot of things but sadness makes us remember a lot especially the times which were good, the same goes with the voice of Mukesh, the sadness and pain in his voice makes us think and feel the taste of happiness. I think there were a lot of singers who were technically more talented than him but hardly anyone of them touched our soul as deeply as Mukesh's voice.

    ReplyDelete